लेखनी कहानी -09-Mar-2023- पौराणिक कहानिया
ईश्वर सेवक ने
उदासीन भाव से
कहा-मुझे क्या
करना है, कुछ
कयामत तक तो
बैठा रहूँगा नहीं,
मगर घर के
बरबाद होने के
ये ही लक्षण
हैं। ईसू, मुझे
अपने दामन में
छुपा।
मिसेज़ सेवक-मैं
अपनी भूल स्वीकार
करती हूँ। मुझे
अंदाज से शकर
निकाल देनी चाहिए
थी।
ईश्वर सेवक-अरे,
तो आज यह
कोई नई बात
थोड़े ही है!
रोज तो यही
रोना रहता है।
जॉन समझता है,
मैं घर का
मालिक हूँ, रुपये
कमाता हूँ, खर्च
क्यों न करूँ?
मगर धान कमाना
एक बात है,
उसका सद्व्यय करना
दूसरी बात। होशियार
आदमी उसे कहते
हैं, जो धान
का उचित उपयोग
करे। इधार से
लाकर उधार खर्च
कर दिया, तो
क्या फायदा? इससे
तो न लाना
ही अच्छा। समझाता
ही रहा; पर
इतनी ऊँची रास
का घोड़ा ले
लिया। इसकी क्या
जरूरत थी? तुम्हें
घुड़दौड़ नहीं करना
है। एक टट्टू
से काम चल
सकता था। यही
न कि औरों
के घोड़े आगे
निकल जाते, तो
इसमें तुम्हारी क्या
शेखी मारी जाती
थी। कहीं दूर
जाना नहीं पड़ता।
टट्टू होता, छ:
सेर की जगह
दो सेर दाना
खाता। आखिर चार
सेर दाना व्यर्थ
ही जाता है
न? मगर मेरी
कौन सुनता है?
ईसू, मुझे अपने
दामन में छुपा।
सोफी, यहाँ आ
बेटी, कलामेपाक सुना।
सोफ़िया प्रभु सेवक के
कमरे में बैठी
हुई उनसे मसीह
के इस कथन
पर शंका कर
रही थी कि
गरीबों के लिए
आसमान की बादशाहत
है, और अमीरों
का स्वर्ग में
जाना उतना ही
असम्भव है, जितना
ऊँट का सुई
की नोक में
जाना। उसके मन
में शंका हो
रही थी, क्या
दरिद्र होना स्वयं
कोई गुण है,
और धानी होना
स्वयं कोई अवगुण?
उसकी बुध्दि इस
कथन की सार्थकता
को ग्रहण न
कर सकती थी।
क्या मसीह ने
केवल अपने भक्तों
को खुश करने
के लिए ही
धान की इतनी
निंदा की है?
इतिहास बतला रहा
है कि पहले
केवल दीन, दु:खी, दरिद्र
और समाज के
पतित जनता ने
ही मसीह के
दामन में पनाह
ली। इसीलिए तो
उन्होंने धान की
इतनी अवहेलना नहीं
की? कितने ही
गरीब ऐसे हैं,
जो सिर से
पाँव तक अधर्म
और अविचार में
डूबे हुए हैं।
शायद उनकी दुष्टता
ही उनकी दरिद्रता
का कारण है।
क्या केवल दरिद्रता
उनके सब पापों
का प्रायश्चित्त कर
देगी? कितने ही
धानी हैं, जिनके
हृदय आईने की
भाँति निर्मल हैं।
क्या उनका वैभव
उनके सारे सत्कर्मों
को मिटा देगा?
सोफ़िया सत्यासत्य के निरूपण
में सदैव रत
रहती थी। धर्मतत्तवों
को बुध्दि की
कसौटी पर कसना
उसका स्वाभाविक गुण
था, और जब
तक तर्क-बुध्दि
स्वीकार न करे,
वह केवल धर्म-ग्रंथों के आधार
पर किसी सिध्दांत
को न मान
सकती थी। जब
उसके मन में
कोई शंका होती,
तो वह प्रभु
सेवक की सहायता
से उसके निवारण
की चेष्टा किया
करती।